मगरूर नहीं हैं हम, अपनी ताकत से।
मार डाले नहीं मुझे, अपनी शरारत से॥
ताउम्र बीत गई, चक्कर काटते-काटते।
न्याय मिलेगा जरूर, अपनी अदालत से॥
मुवव्कील की ज़मीन, जर और बिकी जोरू भी।
वकीलों ने बनाई इमारतें, अपनी अदालत से॥
उकता गए हैं हम, हे भ्रष्ट प्रहरियों।
सब्र की सीमा है, अपनी शराफत से॥
रास्ते के पत्थर ही नहीं, हटेंगे पर्वत भी।
आवाज़ बुलंद कर 'हजारे', अपनी बगावत से॥
कौन आया है कायनात में, रहने को 'राजा'।
दिखा दो संसार को, अपनी अदावत से॥
आनंद शर्मा जी आपके राज में अच्छा क्या था!
8 years ago