Monday, October 29, 2012

रुला गया हंसाने वाला


राजीव मंडल

जसपाल भट्टी का अचानक यूं चला जाना अवाक कर गया। उनके जीवन की डोर में ‘कट’ उस समय लगा जब वह अपनी नवनिर्मित फिल्म ‘पावर कट’ के प्रमोशन के लिए भटिंडा से जालंधर आ रहे थे। सामाजिक सरोकारों से जुड़कर भ्रष्ट होते सिस्टम पर चोट करते रहना, उनकी फितरत थी। हंसाते-हंसाते वह आम आदमी से जुड़े मुद्दों पर गंभीर बातें कह जाते थे। कई बार तो सहज और साफ भाषा में किए गए उनके व्यंग्य इतने तीखे होते थे कि निशाने पर आए व्यक्ति या विभाग को थप्पड़ लगने का अहसास होता था। डिग्री तो उन्होंने इंजीनियरिंग की ली थी लेकिन महारत कॉमेडी इंजीनियरिंग में थी।

भट्टी ने चंडीगढ़ स्थित पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज से इलेक्ट्रिकल इंजीनियर के तौर पर स्नातक किया था। सिस्टम की कुरूपता पर जिस अनोखे और अपनी स्टाइल में भट्टी चोट करते थे, उसका हर कोई कायल था। उनके व्यंग्य की धार बहुत तेज थी। सामाजिक मसलों को भट्टी साहब जिस स्पष्टता, ईमानदारी और साफगोई के साथ जनता के सामने पेश करते थे, वैसा न तो उनके पहले कोई पेश कर सका और न उनके बाद वैसी शख्सियत इस जहान में दिखती है। यह उनकी नैतिक ताकत ही थी कि उन्होंने कभी कॉमेडी में द्विअर्थी संवादों की इंट्री नहीं होने दी।

वैसे वक्त में भी नहीं जब व्यंग्य और हास्य के कई कार्यक्रम भारी- भरकम रकम खर्च कर टीआरपी की दौड़ में खुद को बनाए रखने के लिए न जाने कितने जतन कर रहे हैं। जनता की बात कहने के लिए उन्होंने हमेशा गुदगुदाने वाले हास्य का सहारा लिया, न कि उपहास का। नब्बे के दशक के आरंभ में जसपाल भट्टी ने ‘नॉनसेंस क्लब वनाकर हास्य व्यंग्य की दुनिया में कदम रखा था।’

उन्होंने पहले पहल चंडीगढ़ की ‘सुखना लेक’ में इकट्ठा गंदगी और पानी की कमी के लिए स्थानीय प्रशासन पर कटाक्ष करके लोगों का ध्यान आकर्षित किया था। इसके बाद उन्होंने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। वह हमेशा अच्छे और सच्चे नागरिक की तरह सतर्क रहें। उन्होंने अपने हास्य- व्यंग्य में किसी को भी नहीं बख्शा। वेशक वह अधिकारी, राजनीतिज्ञ अथवा आम नागरिक ही क्यों न हो। वह जनसाधारण के सच्चे प्रतिनिधि थे। काटरूनिस्ट सुधीर तैलंग के मुताबिक, ‘जसपाल भट्टी भारत के पहले क्रांतिकारी कॉमेडियन थे। उनमें गजब का या यूं कहें आश्र्चय कर देने वाला हास्यबोध था।’ स्टैंडअप कॉमेडियन सुनील पाल के मुताबिक, ‘उनके निधन से उनके निकटतम लोगों के साथ ही आज कॉमेडी भी रो रही है।’

आम आदमी की समस्याओं के चितण्रको लेकर भट्टी को हमेशा याद किया जाएगा। उन्होंने वाकई टीवी पर और खासकर, दूरदर्शन के माध्यम से हास्य की विषयवस्तु को नई दिशा देने में अपना योगदान दिया। उनके टीवी कार्यक्रमों ने आम आदमी के मन में गहरी छाप छोड़ी। उन्होंने अपने शांत और ईमानदार हास्यबोध से हमेशा लोगों को आनंदित किया। जसपाल भट्टी आम आदमी की समस्याओं पर बेहद गंभीरता से विचार करते थे और उन्हें कॉमेडी के अंदाज में समाज के सामने बेहद धारदार तरीके से पेश करते थे। यही वजह है कि उन्हें आम और खास, हर तरह के लोग पसंद करते थे। ज्वलंत मुद्दों पर किए जाने वाले उनके सटायर (व्यंग्य) का हर किसी को इंतजार रहता था। वह भ्रष्टाचार विरोधी अभियान के बड़े समर्थक थे।

चाहे महंगाई की मार हो या भ्रष्टाचार का तांडव, हर घाव पर उनके व्यंग्य ने जनता के लिए जहां मरहम का काम किया, वहीं नेताओं को सोचने पर मजबू र भी किया। इन सबके अलावा एक और अच्छी बात यह थी कि भट्टी साहब बॉलीवुड में काम करने के बावजूद कभी भी मुंबई के नहीं हुए। कहने का तात्पर्य यह कि बॉलीवुड की चकाचौंध में भी उन्होंने अपनी पहचान बरकरार रखी। साथ ही, वे चंडीगढ़ के लोगों के अलावा यहां के टैगोर थिएटर में छोटे-मोटे काम करने वालों को भी अपने सीरियल में मौका देकर उनका उत्साहवर्धन किया करते थे। भारतीय टेलीविजन के प्रख्यात हास्य-व्यंग्य कलाकारों में जसपाल सिंह भट्टी एक ऐसे जाने-माने चर्चित चेहरा थे, जो आम आदमी की रोजमर्रा की समस्याओं को बेहद सरल और सहज लेकिन गहरे तक असर करने वाले हास्य के साथ उठाते थे। अपनी टीवी श्रृंखला ‘फ्लॉप शो’ और लघु कैप्सूल ‘उल्टा-पुल्टा’ के लिए हमेशा याद किए जाएंगे। उनके ये दोनों शो 1980 के दशक के आखिर में और 1990 के दशक के शुरू में दूरदर्शन के स्वर्णिम दौर में दर्शकों को गुदगुदाने में सफल रहे थे। बहुत छोटे बजट की श्रृंखला ‘फ्लॉप शो’ तो मध्यम वर्ग के लोगों की समस्याओं को विशिष्टता के साथ उठाने के लिए आज भी याद किया जाता है। चंडीगढ़ में भट्टी ने नुक्कड़ नाटक भी पेश किए जो खासे लोकप्रिय हुए। उन्होंने समाज में फैले भ्रष्टाचार पर हास्य से भरपूर अपने नाटकों के जरिये जम कर निशाना साधा।

टीवी की दुनिया में आने से पहले भट्टी चंडीगढ़ के अखबार ‘द ट्रिब्यून’ में काटरूनिस्ट थे। छोटे परदे पर अपने शो की सफलता के बाद भट्टी ने हिन्दी और पंजाबी फिल्मों में भी काम किया। 1999 में वह फिल्म ‘जानम समझा करो’ में सलमान खान के निजी सचिव बने और इस भूमिका में लोगों ने उन्हें खूब पसंद किया। चंडीगढ़ के समीप मोहाली में उन्होंने अपनाप्रशिक्षण स्कूल स्थापित किया, जिसका नाम ‘जोक फैक्टरी’ रखा। यहीं उनका एनीमेशन स्कूल ‘मैड आर्ट्स’ भी है, जहां उन्होंने 52 कड़ियों वाली हास्य श्रृंखला ‘थैंक यू जीजाजी’ भी तैयार की। इस स्कूल ने बालिका भ्रूण हत्या पर एनीमेशन फिल्म भी बनाई, जिसे वन टेक मीडिया द्वारा आयोजित ‘एडवांटेज इंडिया’ में दूसरा पुरस्कार प्रदान किया गया। इसके अलावा, मुंबई में हुए ‘आईडीपीए..2008 अवार्डस’ समारोह में इस एनीमेशन फिल्म को ‘सर्टिफिकेट ऑफ मेरिट’ भी दिया गया।

भट्टी की नवीनतम फिल्म ‘पॉवर कट’ पंजाब में लगातार की जाने वाली बिजली कटौती पर आधारित है। जसपाल भट्टी ‘डिवाइड इंडिया’ के नाम से चंडीगढ़ में फिल्म महोत्सव का आयोजन करना चाहते थे। इस महोत्सव में वे उत्तर भारतीयों को लेकर अपने बयानों से सुर्खियों में बने राज ठाकरे को निमंतण्रदेना चाहते थे।

Friday, October 19, 2012

टिमटिमाती लौ

अनजाने में ही
नगर बस सेवा की बस के
हिचकोले ने
दे गया
जीवनभर का दंश।

झेल पाना
कितना मुश्किल है
मेरे लिए ...
कुछ के लिए
आसान कैसे
छल-प्रपंच।

तुमने तो भूलवश
छुआ था क्षणिकभर
आैर मजबूरी में
मैंने थामा था तुझको
तिस पर भी
लील लिया था स्वयं ही
शर्म के लिहाफ में।

जाने किस मोड़ पर
छूट गया वो दिन
कहां गया वो मंजर
आैर तुम भी ...।

क्यों आज भी
अधरों पर
होता है महसूस
दीप की कंपकपाती लौ-सी।