खंज़र मेरे सीने में
जो घोंपे हैं तुमने,
उसे आज तक
निकाल नहीं पाया
डरता हूँ, दिल में बसे हो
खंजर निकालते वक़्त
तुम्हें कहीं
खरोंच न लग जाये।
Poet- Dipak Raja