Wednesday, October 28, 2009

डर

खंज़र मेरे सीने में

जो घोंपे हैं तुमने,

उसे आज तक

निकाल नहीं पाया

डरता हूँ, दिल में बसे हो

खंजर निकालते वक़्त

तुम्हें कहीं

खरोंच न लग जाये।

Poet- Dipak Raja

2 comments:

अबयज़ ख़ान said...

दोस्त प्रेमिका के लिए इतना प्यार... बहुत खूबसूरत लिखा है आपने...

वाणी गीत said...

शेर पूरे हिंदी में होते तो असर दुगुना हो जाता ...
शुभकामनायें ..!!