ऑफिस से आते ही
मुस्कुराती मिलती है
मेरी जिन्दगी,
जिसे छोड़ जाता हूँ
रोज जाते वक़्त
मुस्कुराता हुआ.
गुलामी आठ घंटे की,
चंद रकम के लिए
रोक देता है,
जिन्दगी को चमकना,
चहकना, दमकना,
बहकना, मचलना.
समय आयेगा
एक ऐसा भी,
जिन्दगी
टहलेगी, दौड़ेगी
मेरे संग,
बनकर हमदम
मंद-मंद मदमस्त होकर.
अभी जैसा भी वक़्त
कट जाता है,
देखकर मुस्कुराता चेहरा
वो चेहरा, चेहरा नहीं
आईना है
मेरे वजूद का,
जो मौजूद है
एक एहसास, मेरे होने का.
बरन पुंज 2016
8 years ago
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