Tuesday, January 10, 2012

पूछ रहा है देश का बचपन




पूछ रहा है देश का बचपन
राह दिखाने वालों से,
दशा देश की ऐसी क्यूं
क्यों हो, तुम मतवाले से?



लोकतंत्र का ह्रदय हमारा


संसद भी रोया है,


वैष्णो देवी की यात्रा पे


अलख राग भी सोया है,


अपनी ही धरती पर राम


पड़े हुए बंजारे से।





अमरनाथ की यात्रा पर


आतंक यूँ गुर्राया है,


अर्थ जगत का संबल


मुंबई भी थर्राया है,


लाल किला का घाव अभी


है हरा दीवारों पे।




संकट मोचन का प्रांगण


खून से होली खेला है,


अक्षरधाम का अक्षर अक्षर


रक्तपात को झेला है,


घायल क्यों है केसरी बाना


आतंक के अंधियारे से।


वोट बैंक की राजनीति में


देश से कुर्सी प्यारा है,


संसद के बहसों में देखो


जूता -चप्पल न्यारा है,


क्या तेरी काली करतूतों से


मां घायल है तलवारों से।




सुनो हमारी माता ने पीड़ा में


हमें पुकारा है


यौवन लेकर साथ चलें


कमर कसें आगे बढ़े


तरूणाई बनकर बचपन


राख हटा अंगारे से


मुक्ति मिलेगी तभी हमें


आतंकी अंधियारे से...।

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