Monday, November 15, 2021

हिन्दुत्व के बहाने इस्लामिक कट्टरता को परिभाषित कर गए सलमान खुर्शीद

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद ने एक किताब लिखी, जिसका नाम है सनराइज ओवर अयोध्या: नेशनहुड इन आवर टाइम. इसे सलमान खुर्शीद ने अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक आदेश का रेफेरेंस बुक बताया. इसमें उन्होंने हिन्दुत्व की तुलना इस्लामिक आतंकी संगठन आईएसआईएस और बोकोहरम से की है. इस पर विवाद होना तय था और हुआ भी. विवाद से संवाद जन्म होता है, लेकिन अब वो दौर नहीं है जहां विचार से विवाद और फिर विवाद से संवाद हो. अब तो वो दौर है, जहां विचार सीढ़ियों की तरह चुनावी गुणा-गणित के अनुसार बदलते हैं और आपके विचार जैसा भी हो, बवाल ही होना है. और बवाल की आग में सब कूदने को तैयार मिलेंगे, और मीडिया टीआरपी के लिए बवाल को हवा देने का काम करेगा.


इस्लामिक चश्मेसे देखते हैं सलमान खुर्शीद

सनराइज ओवर अयोध्या: नेशनहुड इन आवर टाइम पुस्तक के लेखक सलमान खुर्शीद सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता हैं. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में देश के विदेश मंत्री रह चुके हैं. इतना कुछ होने के बाद भी, एक बात सत्य ये भी है कि लेखक को इस्लाम को मानने वाले हैं. उन्होंने अपने इस्लामिक अनुभव से प्राप्त हुए अनुभूति के चश्मे से ही हिन्दू और हिन्दुत्व को देखा और समझा है. तभी उनके पास उदाहरण भी इस्लामिक संगठन का ही है. 

इस्लामिक संगठन के विरोध का सॉफ्ट तरीका है पेज नंबर 113

मुझे व्यक्तिगत तौर सलमान खुर्शीद के विचार से कोई आपत्ति नहीं है. ये पढ़े-लिखे बुद्धिजीवी सलमान खुर्शीद का तरीका है इस्लामिक संगठन के विरोध का. बोकोहरम और आईएसआईएस को सीधे तौर पर इस्लाम को मानने वाले सलमान खुर्शीद खराब बताने से घबरा रहे हैं. उन्हें पता है, इस्लामिक सत्ता की चाह रखने वाले का विरोध करने का मतलब क्या होता है, कमलेश तिवारी की तरह उदाहरण की अगली कड़ी न बनें, इसलिए उन्होंने विरोध करने के दूसरा तरीका अपनाया है. सलमान खुर्शीद ने किताब के पेज नंबर 113 का चैप्टर है 'सैफरन स्काई' यानी भगवा आसमान लिखकर हरे चादर का विरोध किया है. इसे देखने के लिए सलमान खुर्शीद के इस्लामिक सुधार वाले चश्मे से देखना चाहिए. इसमें सलमान खुर्शीद लिखते हैं -

हिंदुत्व साधु-सन्तों के सनातन और प्राचीन हिंदू धर्म को किनारे लगा रहा है, जो कि हर तरीके से ISIS और बोको हरम जैसे जिहादी इस्लामी संगठनों जैसा है.

दूसरे फ्रेम से पारिभाषित करते हैं राहुल

कांग्रेस नेता राहुल गांधी कहते हैं कि कांग्रेस जोड़ने की राजनीति करती है. यही कहते हुए कांग्रेस कार्यकर्ताओं से संवाद करते हुए हिन्दू और हिन्दुत्व को अलग-अलग परिभाषित करने की कोशिश की. महादेव भक्त मार्कडेय के बाद देश में कोई चीर स्थायी युवा है तो वो राहुल गांधी है. उन्होंने चीर स्थायी युवा अवस्था में विवाद पर संवाद करने की कोशिश की. उन्होंने हिन्दू और हिन्दूत्व को गांधी चश्मे के फ्रेम से देखने की कोशिश की. उन्होंने ये फ्रेम स्वच्छ भारत अभियान के प्रचार पोस्टर से उठाया. हास्य कवि सुरेंद्र दूबे के शब्दों में कहें तो जिस शीशे पर स्वच्छ है, वहां भारत नहीं और जिस पर भारत लिखा है, वहां स्वच्छ नहीं. ठीक वैसे ही चीर स्थायी युवा को एक तरफ हिन्दू दिख रहा है तो दूसरी तरफ हिन्दुत्व. नंगी आंख से देखते समय दोनों आंखें एक साथ देखती है. आंखें इसके लिए जन्म से अभयस्त है, लेकिन फ्रेम वो भी दूसरे के चश्मे का, उसमें दिक्कत आती है. इससे शुरुआत में अलग-अलग ही दिखता है. राहुल गांधी कहते एक साथ देखने के लिए युवा से बुजुर्ग होना पड़ता है, जिसके लिए चिर स्थायी युवा अभी मानसिक रूप से तैयार नहीं हैं.

हिंदुत्व शब्द का इतिहास और विवाद

हिंदुत्व पर टीवी-डिबेट पर अभी जंग छिड़ी हुई है. अगले टॉपिक मिलने तक यह जारी रहेगा, लेकिन माना जाता है कि हिन्दुत्व शब्द का पहली बार साल 1892 में बंगाली साहित्यकार चंद्रनाथ बसु ने प्रयोग किया. उन्होंने 'हिंदुत्व' शीर्षक देकर एक किताब लिखी. ये पुस्तक हिंदुओं को जागृत करने के उद्देश्य से लिखी गई थी. किताब के द्वारा ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ हिंदुओं को लामबंद करने की कोशिश की गई थी.

हिंदुत्व नाम से ही वीर सावरकर ने वर्ष 1923 में एक पुस्तक लिखी थी. उसके बाद हिन्दुत्व शब्द को असल पहचान मिली. माना जाता है कि इसी पुस्तक के विचार ने हिंदू महासभा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का जन्म दिया था. इसमें सावरकर ने हिन्दू हिंदू कौन है, इसकी व्याख्या की थी. सावरकर के विचारों के मुताबिक, जो धर्म हिंदुस्तान के बाहर पैदा हुए, वो गैर हिंदू यानी ईसाई, इस्लाम, पारसी, यहूदी आदि हैं! जो धर्म भारत में पैदा हुए, वे हिंदू यानी वैदिक, पौराणिक, वैष्णव, शैव, शाक्त, जैन, बौद्ध, सिख, आर्यसमाजी, ब्रह्म समाजी आदि है. सावरकर के इसी विचार से कई लोग तब भी सहमत नहीं थे और आज भी नहीं हैं.

जवाहर लाल नेहरू की आत्मकथा 'मेरी कहानी' में हिंदू धर्म की व्याख्या की. उन्होंने लिखा -

मैं समझता हूं कि हिंदू जाति में तरह-तरह के और अक्सर परस्पर विरोधी प्रमाण और रिवाज पाए जाते हैं. इस संबंध में यहां तक कहा जाता है कि हिंदू धर्म साधारण अर्थ में मजहब नहीं कह सकते. फिर भी कितनी गजब की दृढ़ता उसमें है. अपने आप को जिंदा रखने की कितनी जबरदस्त ताकत.

हिंदुत्व पर पीएम मोदी ने एक रैली में कहा था,

'हजारों साल पुरानी ये संस्कृति और परंपरा है. मुनियों की तपस्या से निकला ज्ञान का भंडार है. हिंदुत्व हर युग की हर कसौटी पर खरा उतरा है. हिंदुत्व का ज्ञान हिमाचल से भी ऊंचा, समुद्र से भी गहरा है. ऋषि-मुनियों ने भी कभी दावा नहीं किया कि उनको हिंदू और हिंदुत्व का पूरा ज्ञान है.'

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