जीवन में आया नहीं, गांधी की तकरीर
दिल में बस पाया नहीं, वीरों की तसवीर
दीवारों पर ही टंगा रहे, शहीदों की तसवीर
बदलेगी फिर कैसे, देश की तकदीर।
नयनों में पानी भरा है, लपटे नहीं हैंआग की
सर पे चढ़ा सलीब है, भय है कोई दाग की
करते हैं घृणा पापी से, खाते हैं रोटी पाप की
बदल नहीं सकता समय, फिर जीवन का पीर।
पीर बदले या ना बदले, समय बदलता जाता है
ये सच्चाई आदमी नहीं, इतिहास बतलाता है
दूसरों की क्या बात करें, आदमी स्वयं सताता है
हो व्यभिचार कब तलक, देखें कब आता है वीर।
करते रहें चुनाव, कीच-कौवों की बार-बार
बनती रहे सरकार, मुखौटा बदल बार-बार
स्थिरता करती है, आजादी को तार-तार
तोड़ो कपाट, आआ॓ समर में, बनो रक्तवीर।
कहने से स्वराज, देखें कौन रोक रहा है
किसमें इतना है दम, जो आगे आ रोक रहा है
सामने आआ॓, छिपकर तकदीर लिखने वाले
दौड़ रहा है सिंह गर्जन से, रोम-रोम बनकर तीर।
दीवारों से उठकर, मन मंदिर में वास करो
गांधी, सुभाष, गौतम, गुप्त, फिर से रास करो
जीवन में फिर मेरे, ए क नया संचार भरो
मस्त कलन्दर बन सिकन्दर, जीतेंगे हर गीर।
बहुत हो चुका, बहुत ढो चुका,
ढोंगियों की तकरीर सुनकर जोगियों की,
बहुत खो चुका स्वातं®य वीर
अब ना रूकेंगे, अब ना झुकेंगे,
आजमाए ंगे हर तीर
देखें फिर रोकेगा कौन, बदलने से तकदीर।
दिल में जब बस जाए गा,
शहीदों की तसवीर तकरीर बदलेगी,
जरूर बदलेगी, माटी की तकदीर।
-दीपक ‘राजा’
1 comment:
माटी की चिंता को आपने बहुत सुंदर तरीके से बयां किया है।
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और अब दो स्क्रीन वाले लैपटॉप।
एक आसान सी पहेली-बूझ सकें तो बूझें।
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