हर बार की तरह
इस बार भी
मेरा संकल्प,
टूट गया दृढ़ होकर
कि तुम्हें देखकर
अनजान बना रह जाऊंगा।
तुम्हारे तमाम कोशिशों को
नाकाम कर जाऊंगा
लेकिन
जैसे ही तुझसे
होता है मेरा सामना,
मेरा संकल्प
कुछ देर के लिए
थम जाता है।
तमाम उलझनों को
भूल जाता हूँ
तुम्हें मंजिल तक पहुँचाने को,
वैसे ही जैसे
उरू (जांघ) अंगद का
राजदरबार में
जम जाता है।
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