काँटों से दामन को बचाना, सबको नहीं आता।
काँटों से दामन को उलझाना, सबको नहीं आता।।
अपने हाथों बदनाम हुए, दूसरों के खातिर।
ऐसा कोई भी नज़र, सबको नहीं आता।।
अंधेरे में साया भी, साथ नहीं देता।
वक़्त वेवक्त साथ निभाना, सबको नहीं आता।।
गरीबी मिटाओ के नारों में, मिट गए गरीब।
ख़ुद की गरीबी मिटाना, सबको नहीं आता।।
हम क्या थे, क्या हैं, और क्या होना था हमें।
इसके लिए सोच पाना, सबको नहीं आता।।
जानते हैं सब अपनों पे, कुर्बान हो जाना।
अपनों के खातिर, कत्ल करना, सबको नहीं आता।।
बरन पुंज 2016
8 years ago
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