Sunday, December 11, 2011

एक पेड़ ऐसा जिस पर फले रूपए

हर आदमी, चाहे वो जहाँ भी है और जिस हालत में है, जीवन यापन कर रहा है। हर एक व्यक्ति अपनी स्थितियों और परिस्थितियों को अपने अनुसार बनाना चाहता है। उनके लिए जो कुछ बन पा रहा है, करने की कोशिश कर रहे हैं। हालाँकि जितना सोच पाते हैं, उतना नहीं मिल पाता है।एक मंच ऐसा मुझे दिखा है जहाँ से हर आदमी अपने जरुरत और इच्छा के मुताबिक अपने सपनों को हकीकत में बदल सकता है। अपने साथ साथ परिवार में आने वाली पीढ़ियों के लिए भी रुपये का पेड़ छोड़ सकता है। पेड़ तो एक साल में एक बार फल देता है, लेकिन मैं जिस पेड़ कि बात कर रहा हूँ वो साल में के बार नहीं पूरे बावन हफ्ते रुपये का फल दे सकता है।उस फल को पाने के लिए बस एक बार पेड़ का बीज खरीदना पड़ेगा। बीज को खरीदने के बाद बीज को पौधा बनाने तक ध्यान देना पड़ेगा। बीज एक बार पौधा बन जाये, फिर तो फलदार बनने से कोई नहीं रोक सकता है।रूपये के पेड़ का बीज खरीदने के लिए आपको सेक्योर लाइफ नाम के नेटवर्क मार्केटिंग कंपनी के साथ जुडी कंपनियों का कोई एक प्रोडक्ट जो आपके लिए उपयोगी हो, खरीदना होगा। इसके साथ ही बीज आपके हाथ में आ जायेगा। प्रोडक्ट क्या है, इसे देखने के लिए आप वेब http://www.securedlives.com/ सर्च करके देख सकते है।

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Friday, August 26, 2011

देश के नागरिकों से एक आग्रह

जनलोकपाल विधेयक को लेकर देश अभी अन्नामय है। अन्ना के समर्थन में देश के कोने-कोने में धरना प्रदर्शन हो रहे हैं। हजारों लोग दिल्ली के रामलीला मैदान में अन्ना के साथ अनशन में शरीक भी हैं। लोगों को लगता है कि अन्ना के अनशन से समाज आैर देश का भला होने वाला है। धीरे-धीरे अन्ना की मुहिम के समर्थकों का कारवां बढ़ रहा है।

फिर भी बहुत से ऐसे लोग भी हैं जो अन्ना के मुहिम में शामिल होना तो चाहते हैं लेकिन कुछ-न-कुछ ऐसी मजबूरी सामने आ जाती है जो उन्हें अन्ना के साथ खड़ा होने नहीं दे रही है या वह अन्ना की मुहिम में अपना योगदान नहीं कर पा रहे हैं। वैसे लोगों की संख्या हजारों, लाखों नहीं करोड़ों में है। इसमें हम आैर आप भी हैं।

हम आैर आप अन्ना की मुहिम का समर्थन 'यथा शक्ति यथा भक्ति" के मुताबिक भी कर सकते हैं, वह भी बिना दिनचर्या को बिगाड़े। न ज्यादा समय का खर्च आैर न ही ज्यादा आर्थिक नुकसान। अन्ना के मुहिम को बल देने के लिए आपका पचास पैसा बहुत बड़ा योगदान दे सकता है।

पचास पैसा हर कोई खर्च कर सकता है, चाहे जैसी भी परिस्थिति हो। आपको सिर्फ डाकघर तक जाना है। आप जहां भी रहते हैं, या जहां भी हैं, उससे जो भी डाकघर पास पड़ता वहां जाएं पोस्टकार्ड खरीदें आैर प्रधानमंत्री को पत्र लिखें।
फिर देर किस बात की है। डाकघर पहंुचिए आैर पत्र लिख डालिए प्रधानमंत्री के नाम ...।

प्रधानमंत्री के नाम लिखे पत्र में क्या लिखना है, यह आपके स्वविवेक पर निर्भर करता है। आप चाहें तो आम नागरिक होने के नाते सरल शब्दों में अन्ना के सशक्त जनलोकपाल बिल के समर्थन में पत्र लिख सकते हैं या फिर आप आस-पास गैर कानूनी तरीके से होने वाले कार्य निष्पादन के बारे में भी पत्र में लिख सकते हैं।

प्रधानमंत्री के नाम पोस्टकार्ड लिखिए, अन्ना की मुहिम को बल देने के लिए। आपका यह छोटा सा अंशदान आैर श्रमदान देश के भविष्य, सुरक्षा, संरक्षा आैर सवद्र्धन के लिए बहुत जरूरी है। इससे आपकी दिनचर्या पर बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन आपको एक सुखद अहसास जरूर होगा कि आपने भी अन्ना की मुहिम को आगे बढ़ाने में योगदान दिया। वह भले ही श्रीराम सेतु निर्माण में तल्लीन गिलहरी के योगदान जैसा क्यों न हो।

देश के प्रधानमंत्री का पता है-

प्रधानमंत्री कार्यालय
साउथ ब्लॉक, रायसिना हिल
नई दिल्ली-110001



निवेदक- दीपक राजा
अन्ना मुहिम का समर्थक

Wednesday, August 3, 2011

आवाज़ बुलंद कर हजारे


मगरूर नहीं हैं हम, अपनी ताकत से.
मार डाले नहीं मुझे, अपनी शरारत से..

ताउम्र बीत गई, चक्कर काटते-काटते.
न्याय मिलेगा जरूर, अपनी अदालत से..

मुव्वकिल की जर, जमीन और बिकी जोरू भी.
वकीलों ने बनाई इमारतें, अपनी वकालत से..

उकता गए हैं हम, हे भ्रष्ट प्रहरियों.
सब्र की सीमा है, अपनी शराफत से..

रस्ते के पत्थर ही नहीं, हटेंगे पर्वत भी.
आवाज़ बुलंद कर हजारे, अपनी बगावत से..

कौन आया कायनात में, रहने को सदा.
दिखा दो संसार को, अपनी अदावत से..

Thursday, July 14, 2011

वो चेहरा

ऑफिस से आते ही
मुस्कुराती मिलती है
मेरी जिन्दगी,
जिसे छोड़ जाता हूँ
रोज जाते वक़्त
मुस्कुराता हुआ.

गुलामी आठ घंटे की,
चंद रकम के लिए
रोक देता है,
जिन्दगी को चमकना,
चहकना, दमकना,
बहकना, मचलना.

समय आयेगा
एक ऐसा भी,
जिन्दगी
टहलेगी, दौड़ेगी
मेरे संग,
बनकर हमदम
मंद-मंद मदमस्त होकर.

अभी जैसा भी वक़्त
कट जाता है,
देखकर मुस्कुराता चेहरा
वो चेहरा, चेहरा नहीं
आईना है
मेरे वजूद का,
जो मौजूद है
एक एहसास, मेरे होने का.

Wednesday, April 6, 2011

आवाज़ बुलंद कर 'हजारे', अपनी बगावत से

मगरूर नहीं हैं हम, अपनी ताकत से।
मार डाले नहीं मुझे, अपनी शरारत से॥

ताउम्र बीत गई, चक्कर काटते-काटते।
न्याय मिलेगा जरूर, अपनी अदालत से॥

मुवव्कील की ज़मीन, जर और बिकी जोरू भी।
वकीलों ने बनाई इमारतें, अपनी अदालत से॥

उकता गए हैं हम, हे भ्रष्ट प्रहरियों।
सब्र की सीमा है, अपनी शराफत से॥

रास्ते के पत्थर ही नहीं, हटेंगे पर्वत भी।
आवाज़ बुलंद कर 'हजारे', अपनी बगावत से॥

कौन आया है कायनात में, रहने को 'राजा'।
दिखा दो संसार को, अपनी अदावत से॥

Tuesday, March 22, 2011

‘वेलेंटाइन डे’ प्यार या फूहड़ता?




पाश्‍चात्य देशों में क्रिसमस डे के बाद सबसे ज्यादा उत्साह वेलेंटाइन डे यानी १४ फरवरी को देखने को मिलता है । वेलेंटाइन डे से हमारा कोई लेना-देना नहीं और न ही यह हमारी संस्कृति है, फिर भी पाश्‍चात्य देशों में मनाया जाने वाला वेलेंटाइन डे भारतीय उपमहाद्वीय में भी लोकप्रिय होने लगा है । जैसे-जैसे इसका प्रचार हुआ है, इसकी मुखालफत में स्वर भी मुखर हुए ।

वेलेंटाइन डे मनाने के तरीके को लेकर ही हमारे देश में विरोध होना शुरू हुआ । वेलेंटाइन दे मनाने के नाम पर जो अश्लीलता और भौड़ा प्रदर्शन होता है वह हमारी संस्कृति नही है । इस तरह की प्रवृत्ति हमारी सभ्यता के खिलाफ है । हिंदुस्तानी होने की पहचान ही हमारी सभ्यता है । हिन्दुस्तानी स्कृति में वसुधैव कुटुंबकम सर्वोपरि है । ‘प्यार बांटते चलो’ की राह हमने दुनिया को दिखाई है । मगर प्यार के नाम पर भौंड़ा प्रदर्शन हमने कभी नहीं किया । हमें प्रेम दिवस मनाने में ऐतराज नहीं है । ऐतराज उसके तरीके से है । मौलवी हो या संत, फकीर हो या फादर हम हिन्दुस्तानी हर किसी का आदर करना जानते हैं ।

हमारी संस्कृति हमें ‘स्वयं को तिल-तिल जलाकर सलभ और सुलभ बनना सिखाती है । ‘समर्पण की शिक्षा देती है । प्यार में भी समर्पण है और हमारा जीवन इसी प्यार पर टिका है । हालांकि जिस प्यार पर जीवन आधारित है, वह वेलेंटाइन डे का एक दिवसीय प्यार नहीं हो सकता । प्यार, इश्क और मोहब्बत किसी के लिए खुदा है तो किसी के लिए दिल का सुकून, किसी के लिए जिन्दगी है तो किसी के लिए जीने का सहारा । तभी तो कहा गया ‘दिल की लगी क्या जाने, ऊंच-नीच और रीति-रिवाज, घर बिरादरी और लोक लाज ।’ वेलेंटाइन डे के नाम पर जो प्यार युवाओं में उमड़-उमड़कर पार्कों, सड़कों, सिनेमा हॉलों और मॉल में दिखाई देता है, उसका विरोध लाजिमी है । वेलेंटाइन डे में प्यार नहीं वासना ज्यादा होती है । उसमें दिखावा होता है और जहां दिखावा है वहां स्वाभाविक प्यार हो ही नहीं सकता । ऐसे प्यार में स्वार्थ की दुर्गध आती है इसलिए भारत इसका विरोध करता है । दर‍असल वेलेंटाइन डे सोच उपभोक्‍तावादी संस्कृति का परिणाम है । यह पांच ‘म’ पर आधारित है । ये पांच ‘म’ हैं- मद्य, मीन, मुद्रा और मैथुन ।

अभी हाल में सोशल नेटवर्किग साइट फेसबुक ने एक सर्वे कराया । सर्वे के आधार पर ब्रिटिश पत्रकार डेविड कांडेलेस ने एक रिपोर्ट तैयार की । रिपोर्ट में यह बात उभर कर सामने आई कि वेलेंटैअन डे के बाद सबसे ज्यादा रिश्तों में बिखराव आया, ब्रेक‍अप हुए । यह कैसा प्रेमोत्सव है जो रिश्तों में बिखराव लाता है । इसे हम क्यूं मनाएं । वैसे भी हमारी संस्कृति में प्यार के त्योहारों की कोई कमी नहीं है । संत वेलेंटाइन ने तो परिवार के सदस्यों के आपसी रिश्ते की मजबूती और विवाह जैसी संस्था के लिए संदेश दिया था । आजकल इसके नाम पर भौड़ा प्रदर्शन हो रहा है । इससे हमारी भारतीय छवि प्रभावित हो रही है । इससे समाज में विकृति भी फैलने लगी है । जिस त्योहार से समाज को कोई सीख न मिले, उलटा उससे समाज पर प्रतिकूल असर पड़े उसक तो न मनाना ही हितकर है । हो सकता है कि नई पीढ़ी के तथाकथित आधुनिक युवाओं को इस बात में बुजुरा खयालात नजर आएं, मगर यह एक सच्चाई है जिसे देर सवेर वह भी मानेंगे लेकिन तब तक देर हो चुकी होगी ।

युवाओं में 14 फरवरी को वेलेंटाइन डे के दिन प्यार उमड़-उमड़ कर आ रहा होता है । यह बाजारवाद का प्रभाव है । इसमें समर्पण का वह भाव नहीं दिखता जो रिश्तों को स्थायित्व प्रदान करे । हमारी परम्परा में प्यार 24 घंटे, सातो दिन और जीवनभर ही नहीं जीवन पर्यन्त शामिल है । वेलेंटाइन डे की संस्कृति को बलपूर्वक बढ़ावा बाजार दे रहा है । बाजार को मालूम है कि भारतीय उपमहाद्वीप में युवाओं की संख्या ज्यादा है और अगले पांच दशक तक यह संख्या बनी रहेगी । इसलिए बाजार उन्हें फुसलाने का काम कर रहा है । हमारे जीवन का आधार हमारा प्यार है जिसे हम अनमोल मानते हैं । बाजार उसे वेलेंटाइन डे के माध्यम से बिकाऊ बनाता है ।

बाजार हर चीज को भुनाता है । वेलेंटाइन डे के नाम पर प्यार को भुनाने की कोशिश की जाती है । यूएस ग्रीटिंग कार्ड के आंकलन के मुताबिक पूरे विश्‍व में एक बिलियन कार्डों की बिक्री अकेले वेलेंटाइन डे के समय होती है । उपहार, फूलों का बाजार इतना बढ़ा है कि उसका आंकलन कर पाना मुश्किल है । केवल अपने देश में फूलों व उपहारों का व्यापार १५ करोड़ से ज्यादा है । आप भले ही प्यार करने की कला और शब्द जाल का प्रयोग करना न जानते हों, आप आकर्षक न भी हों फिर भी समर्पण वह कला है जो इन तमाम झंझावतों से इतर वेलेंटाइन डे पर भारी पड़ती है । अगर आप किसी के प्रति समर्पित हैं तो एक न एक दिन उसका प्यार आपको मिलेगा । साल के 365 दिन हमारे लिए प्यार के ही दिन है, फिर वेलेंटाइन डे मनाने कि क्या जरूरत ।

Tuesday, March 8, 2011

... गर औरत चाह ले


... गर औरत चाह ले


फरिश्ता बना ले इसकी हिम्मत, गर औरत चाह ले।
बन जाये कुछ भी वो, गर औरत चाह ले।।

इन्सान का रूतबा खुदा से मिला दे।
इतना उठा दे इन्सान को, गर औरत चाह ले।।

दुनिया कोई ताकत नहीं, जो इसको रोक ले।
नौकर बना ले इन्सान को, गर औरत चाह ले।।

घुट घुट कर जीने की आदत है जिन्हें।
खाक कर दे दुनिया को, गर औरत चाह ले।।

किसको पाने के लिए जीयेगी दुनिया 'राजा'।
छोड़ दे जीना औरत, गर औरत चाह ले।।

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर
कविता महिलाओं को समर्पित

Monday, January 31, 2011

मेरा संकल्प


हर बार की तरह
इस बार भी
मेरा संकल्प,
टूट गया दृढ़ होकर
कि तुम्हें देखकर
अनजान बना रह जाऊंगा।
तुम्हारे तमाम कोशिशों को
नाकाम कर जाऊंगा
लेकिन
जैसे ही तुझसे
होता है मेरा सामना,
मेरा संकल्प
कुछ देर के लिए
थम जाता है।

तमाम उलझनों को
भूल जाता हूँ
तुम्हें मंजिल तक पहुँचाने को,
वैसे ही जैसे
उरू (जांघ) अंगद का
राजदरबार में
जम जाता है।